अशोक स्तंभ के शेर बारे में 4 मुख्य रोचक जानकारी। Ashok stambh ke Sher ke bare mein 4 rochak jankari


Jankari National Emblem Ashok Stambh, राष्ट्रीय प्रतीक की अहमियत क्या है,सत्यमेव जयते का मतलब क्या है । सत्यमेव जयते अर्थ क्या है।प्रतीक चिन्ह के सिंह के बारे में जानकारी,कौन इस्तेमाल नहीं कर सकते अशोक स्तंभ का प्रतीक चिन्ह।


हमारे देश का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया. सोमवार  दिनांक 11 जुलाई 2022 को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के हिस्से के अन्तर्गत नए संसद भवन के शीर्ष (छत)पर इसका अनावरण  श्री पीएम नरेंद्र मोदी ने किया.


 Ashok Stambh- जुलाई के इस माह में सोमवार को  सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के उद्घाटन अनावरण। नए संसद भवन (Parliament Building ) की छत पर देश के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक की स्तंभ Ashok Stambh -Laat का अनावरण प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी ने किया है. अशोक के स्तंभ का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के रुप में व भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर चुनाव किया जाना भारत के संविधान निर्माताओं की दूरदर्शी सोच का परिचायक है.हमारे देश की संसद भवन पर इसका स्थान होना अपना विशेष महत्व व स्थान रखता है. क्योंकि सम्राट अशोक की इस लाट एवम् भारत के बीच भी एक खास संबंध है.


सत्यमेव जयते का मतलब क्या है । सत्यमेव जयते अर्थ क्या है।

अशोक स्तंभ के नीचे की तरफ मुण्डकोपनिषद का सूत्र "सत्यमेव जयते-Satyamev Jayate" लिखा होता है. जिसका मतलब है कि, सच हमेशा जीतता है. या सत्य की हमेशा विजय होती है।

यह भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अपने आप में बहुत ही शानदार अनोखा एवं अद्वितीय है. अशोक स्तंभ कि आकृति में चार शेर होते हैं, परन्तु तीन ही शेर की आकृति दिखाई देती हैं. इसकी गोलाकार आकृति के कारण से आप किसी भी ओर से देखेंगे तो आप को सिर्फ तीन ही शेर दिखाई देंगे . एक शेर हमेशा नहीं दिखाई पड़ता. इसके अलावा इसके नीचे की ओर एक सांड और एक घोड़े के आकृतियों के मध्य में एक चक्र हैं.इसका महत्व इसी से मालुम होता है की, इसको हमारे राष्ट्रीय झंडे में स्थान दिया गया है।


कौन इस्तेमाल नहीं कर सकते अशोक स्तंभ का प्रतीक चिन्ह।


इसका महत्व व ताकत इतनी अधिक है कि, ये एक सामान्य से कागज़ पर अंकित हो जाये या लग जाए तो उसको महत्वपूर्ण बना देता है, जानते हैं क्यों, क्योंकि यह प्रतीक चिन्ह संवैधानिक पद एवं संविधान की ताकत(शक्ति) को प्रकट करता है.अशोक की लाट वाले इस भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (National Emblem) का इस्तेमाल हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता. सिर्फ संवैधानिक पदों पर रहने वाले व्यक्ति ही इसका उपयोग कर सकते हैं. जिनमें देश के प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति,राज्यपाल,उप-राज्यपाल, केंद्रीय के मंत्री, न्यायपालिका एवम् सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी जैसे लोग आते हैं, जबकि रिटायर होने के पश्चात कोई भी सांसद, मंत्री,विधायक एवं अधिकारी बिना अधिकार  इसका इस्तेमाल ( उपयोग)नहीं कर सकते. इतना सब नियम कायदा होने के पश्चात भी इस प्रतीक चिन्ह का बेजा इस्तेमाल किए जाने पर भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 कानून बनाया गया. वर्ष 2007 में इसका सुधार संशोधन कर इसको अपडेट किया गया है. इसके अन्तर्गत बिना अधिकार कोई भी इसका इस्तेमाल करता पाया जाता है तो, उसको दो साल की कैद(कारावास) एवं पांच हजार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है. 



राष्ट्रीय चिन्ह के अनावरण पर भारत में राजनीति !  

राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में इसकी अहमियत क्या है।

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राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न अधिकार का प्रतीक है, एवम् सरकार के समस्त आधिकारिक संचार में इस का इस्तेमाल (उपयोग)किया जाता है,भारत का यह राष्ट्रीय प्रतीक या राजचिह्न सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया. यह प्रतीक चिह्न दुनियाभर में किसी भी देश व स्वतंत्र राष्ट्र के अस्तिव एवम् संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है. अतः इसे 'राज्य प्रतीक' भी कहा जाता है. इसको प्रथम बार 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था, इस दिन भारत में भारतीय संविधान को लागू किया गया था. तब से यह भारत गणराज्य के द्वारा भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में इस्तेमाल किया जाता  रहा है.

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धम्म चक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक


 सारनाथ का यह अशोक स्तंभ धर्मचक्र वर्तन की ऐतिहासिक घटना के यादगार के तौर पर स्थापित किया गया. इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य धर्मसंघ की अक्षुण्णता को बनाए रखना था. ये चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फिट लंबे प्रस्तर खंड पर  बनाया हुआ है. जमीन के अंदर की ओर धंसे आधार को छोड़ कर इसका दंड गोलाकार का है, जो कि ऊपर की तरफ धिरे धिरे पतला होता जाता है. दंड के ऊपरी तरफ इसका कंठ एवं कंठ के ऊपर इसका शीर्ष होता है. इसके कंठ के नीचे उलटा कमल बना है.इसका गोलाकार कंठ चक्र से चार भागों में बंटा हुआ है. जिनमें घोड़ा, हाथी, सांड {बुद्ध की वृष राशि का प्रतीक} एवं सिंह की  आकृतियां उभरी हुई है.इस कंठ के ऊपर यानी शीर्ष भाग में चार सिंह मूर्तियां हैं, और यह सब एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. इन चारों के मध्य में एक छोटा दंड था,जो 32 की तिल्लियों वाले धर्मचक्र को प्रदर्शित करता रहा है. ये भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष गुणों का प्रतीक माना जाता है. यह स्तंभ अपनी अलग और शानदार बनावट में ही अद्भुत है. इस टाइम  इसका निचला भाग अपने मूल स्थान में है. शेष को संग्रहालय में रखा है. यह आज भारत गणतंत्र का राज्य चिह्न है.


प्रतीक चिन्ह के सिंह के बारे में जानकारी।


सारनाथ के जिस अशोक स्तंभ की आकृति को भारतीय  राष्ट्रीय प्रतीक होने का गौरव मिला हुआ है, इसमें दिखाए गए ,सिंहों यानी शेरों का भी अपना खास महत्व है. हालांकि चार में से सिर्फ तीन ही शेर प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देते हैं. बौद्ध धर्म के अनुसार सिंह विश्वगुरु एवं तथागत बुद्ध माने जाते हैं. पालि गाथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध ने शाक्यसिंह एवं नरसिंह भी माने जायेंगे हैं. बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर मृगदाव में  भिक्षुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु" बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"का प्रचार करने को कहा गया था. जोकि आज सारनाथ  के नाम से भी मशहूर है. इसलिए यहां के हुए  मौर्य साम्राज्य  के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती यानी अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों का निर्माण करवाया था. चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का यह चौमुखी सिंह स्तंभ विश्वगुरू तथागत बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन तथा उनके लोक कल्याणकारी धर्म के प्रतीक के रूप में स्थापित है.  


कलिंग युद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ।


कलिंग कै युद्ध के पश्चात् बदला था, सम्राट अशोक का दिल।

देश का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह कोई मामूली प्रतीक चिह्न नहीं है. ये बहुत सी विशेषता के साथ एक क्रूर सम्राट के हृदय परिवर्तन होने कि घटना का भी उल्लेख करता है. आज से 273 ईसा पूर्व के कालखंड में पीछे देखा जाए तो भारत वर्ष में मौर्य वंश तीसरे राजा अशोक (Emperor Ashoka) का राज्य था. जिनको एक क्रूर शासक जानें जाते थे. कंलिगा युद्ध में हुऐ नरसंहार ने इस क्रूर शासक का ,ऐसा हृदय परिवर्तन किया कि, उन्होंने अपना बाकी जीवन बौद्ध धर्म को समर्पित कर दिया था. आगे चलकर इसी बौद्ध धर्म  के प्रचार प्रसार में उनका पूरा परिवार शामिल हो गया था और उन्होंने सारनाथ में अशोक स्तंभ  का निर्माण करवाया. यहां पर भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था, एवमू इसे सिंह गर्जना के तौर पर भी जाना जाता रहा है. भारत देश की आजादी के पश्चात देश का भी कायाकल्प होने लगा,  देश के संविधान निर्माताओं ने इसको राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर मान्यता दी थी.


अशोक स्तंभ में उपस्थित शेर हमें क्या शिक्षा व जानकारी प्रदान करते हैं।

1. हमें सत्य व न्याय के मार्ग पर चलना सिखाते हैं।

2. यह दहाड़ते हुए शेर धम्मचक्र प्रवर्तन के रूप में दृष्टिमान है।

3.भिक्षुओं को  बुद्ध से ज्ञान प्राप्त होने के बाद,चारो दिशाओं में जाकर  उसे लोककल्याण हेतु बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय का आदेश इसी पंक्ति में दिया गया।

4.सत्य हमेशा विजयी होता है।


FAQ

Q. अशोक स्तंभ के प्रतीक चिन्ह में कितने शेर होते हैं?

Ans.4 शेर होते हैं।

Q.अशोक स्तंभ का प्रतीक कहां से लिया गया है

Ans.सारनाथ से।

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